
नगर के मध्य भाग में स्थित यह सर्वाधिक प्राचीन एवं प्रसिद्ध मन्दिर है। इस मन्दिर का इतिहास ही वस्तुतः हृषीकेश का इतिहास है। स्कन्द पुराण केदार खंड के 115 से 120 अध्याय तक इस प्राचीन मन्दिर का विस्तृत वर्णन किया गया है।
17वें मन्वन्तर में इस स्थान पर तपोरत परम तेजस्वी रैभ्य मुनि के तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने स्वयं श्रीमुख से कहा मैं हृषीकेश नाम वाला सदा यहाँ स्थित रहूंगा। अतः इस क्षेत्र का दूसरा नाम हृषीकेश से अश्रित स्थल (हृषीकेषाश्रम) होगा।


पावन पवित्र माँ गंगा के सुरम्य तट पर हृषीकेश नारायण श्री भरत जी महाराज के पौराणिक श्री भरत मन्दिर परिसर में तत्कालीन धर्मानुरागी, भगवद्स्वरुप महन्त श्री परशुराम महाराज जी द्वारा भारतीय संस्कृति एवं संस्कृत शिक्षा के संरक्षण एवम् संवर्धन के लिए 11 मार्च 1921 में श्री भरत संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की गयी।
श्री भरत मन्दिर के पृष्ठ भाग में पश्चिम की ओर स्थित भगवती दुर्गा के मन्दिर को ही भद्रकाली का मन्दिर कहा जाता है। स्कन्द पुराण के केदार खंड में इस स्थान का महात्मय बताया गया है।
माहेश्वरी के नाम से विख्यात यह स्थान सब प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाला है, इस स्थान पर स्वयं साक्षात् रुद्र भी अन्य देवगणों सहित सन्निहित रहते हैं।
नगर एवं क्षेत्र में आधुनिक शिक्षा की महती आवश्यकता पूर्ति हेतु सन् 1941-42 में परम सम्मानीय महन्त परशुरामजी महाराज ने मन्दिर परिसर में ही एक छोटा सा विद्यालय स्थापित किया
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